पंचधार का केवटिन देऊल महादेव मंदिर

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सारंगढ़ बिलाईगढ़//जिले के नगर पंचायत सरिया के सीमा पर ग्राम पुजेरीपाली और पंचधार आपस में जुड़े हैं, जहां महादेव और मां बोर्रासेनी, बोर्राहासिनी का मंदिर है। जनश्रुति अनुसार पंचधार में किसी भी व्यक्ति के जगने के पूर्व इस मंदिर को एक ही रात में ही निर्माण करना था, लेकिन केेंवट जाति की महिला ब्रम्ह मुहूर्त में उठकर ढेंकी से अपना कार्य करने लगी, जिसकी आवाज शिल्पी विश्वकर्मा देव तक पहुंची, लोग जग गए इसकी जानकारी मिलने पर निर्माणकर्ता विश्वकर्मा देव ने इस मंदिर के कलश स्तंभ आदि के निर्माण को अधूरा ही छोड़ दिया। इस कारण इस मंदिर का नामकरण केवटिन देऊल महादेव मंदिर है। लोग इस मंदिर को पाताल से जुड़ा मानते हैं और पूजा विधान में जल से शिवलिंग का अभिषेक करते हुए जल भराव करने की कोशिश की जाती रही है और आज तक शिव लिंग का जल भराव नहीं कर पाए हैं। इसी प्रकार मंदिर परिसर में एक कुआं है, जिसका पानी कभी भी, गर्मी में भी नहीं सूखता।

मंदिर की संरचना

केवटिन देऊल महादेव मंदिर पूर्व की ओर मुख वाला है और इसमें एक चौकोर गर्भगृह, अंतराल और एक मुख-मंडप है। मुख-मंडप एक आधुनिक निर्माण है। मंदिर अपने दरवाजे के फ्रेम को छोड़कर ईंटों से बना है। मंदिर का विमान पंच-रथ पैटर्न का अनुसरण करता है। अधिष्ठान में खुर, कुंभ, कलश, अंतरपट्ट और कपोत से बनी कई साँचे हैं। कुंभ साँचे पर चंद्रशाला की आकृतियाँ उकेरी गई हैं और कलश को पत्तों की आकृतियों से सजाया गया है। जंघा को दो स्तरों में विभाजित किया गया है, जिन्हें बंधन साँचे द्वारा अलग किया गया है। निचले स्तर पर बाड़ा-रथ में एक गहरा आला है, कर्ण-रथ पर अधूरे चंद्रशाला रूपांकन हैं और प्रति-रथों पर अल्पविकसित आयताकार उभार हैं। ऊपरी स्तर पर रथों के ऊपर अनियमित डिज़ाइन हैं ; कुछ स्थानों पर, हम आले और अन्य क्षेत्रों में अल्पविकसित डिज़ाइन देखते हैं। लैटिना नागर शैली के शिखर में छह भूमियाँ (स्तर) हैं। एक भूमि-अमलक प्रत्येक भूमि को सीमांकित करता है। कर्ण-रथों पर बरामदे के ऊपर भारवाहक रखे जाते हैं। शिखर पर ओडिशा के मंदिरों का प्रभाव है। ओडिशा की सीमावर्ती गाँव से है, इसलिए ओडिशा क्षेत्र का प्रभाव स्वाभाविक है।

अतीत में हुए स्वर्ण वर्षा का क्षेत्र

जनश्रुति अनुसार अतीत में पुजेरीपाली क्षेत्र में स्वर्ण वर्षा हुआ था। इस कहानी को लोग हकीकत भी मानते हैं, जब यहां के नागरिकों को पुजेरीपाली के टिकरा क्षेत्र में उद्यान फसल, उड़द, मूंगफली आदि के लिए खुदाई के समय स्वर्ण के टुकड़े मिलता है। सोना मिलने की बात पुजेरीपाली के लोग स्वीकार करते हैं।

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